Ad

आंवले की खेती

आंवला से बनाएं ये उत्पाद, झटपट होगी बिक्री

आंवला से बनाएं ये उत्पाद, झटपट होगी बिक्री

विटामिन सी के सबसे अच्छे स्रोत के रूप में अपनी पहचान बना चुका आंवला (Indian gooseberry), भारतीय प्राचीन काल से ही कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता रहा है। आंवले की खेती के पीछे सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यह है, कि इसे किसी खास प्रकार के मौसम की जरूरत नहीं होती और कम जमीन पर भी बहुत अच्छी उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है। यह बात तो आप जानते ही हैं, कि आंवले का इस्तेमाल अचार, मुरब्बा और कैंडी बनाने के अलावा कई प्रकार के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, जैसे कि त्रिफला और च्यवनप्राश में भी किया जाता है। यदि आप भी कुछ दूसरे किसान भाइयों की तरह की आंवले की खेती करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप को समझना होगा कि पूसा के वैज्ञानिकों ने आंवले की खेती के पश्चात, प्राप्त हुए आंवले से बनने वाले दूसरे उत्पादों को तैयार करने की नई विधियां, किसान भाइयों के समक्ष रखी है।

ये भी पढ़ें: फलों के प्रसंस्करण से चौगुनी आय

आंवले की कैंडी कैसे बनाई जाती है ?

यदि आपने अपने खेत से अच्छी मात्रा में आंवला प्राप्त कर लिया है, तो इस 'अमृत फल' का इस्तेमाल, इसकी कैंडी बनाने में किया जा सकता है।
  • आंवले की कैंडी बनाने के लिए आपको एक किलोग्राम आंवले के साथ लगभग 700 ग्राम तक चीनी के घोल को मिलाना चाहिए।
  • इस विधि के दौरान किसान भाइयों को सबसे पहले, पौधे से मिले हुए आंवलों को बिल्कुल साफ पानी से धो लेना चाहिए,
  • फिर उन्हें किसी बड़े बर्तन में डालकर अच्छी तरीके से उबालना होगा।
  • किसान भाई ध्यान रखें, कि इसे उबालने के समय बर्तन को ऊपर से पूरी तरीके से ढक दें और 2 से 3 मिनट तक पकने की तैयारी करें।
  • उसके बाद अतिरिक्त पानी को बाहर निकालकर ठंडा होने दें।
  • इसके बाद उन्हें बाहर निकाल कर चीनी को मिला दिया जाता है और इसे 2 से 3 दिन तक ढक कर रख देना चाहिए।
  • अच्छी तरीके से ढकने पर उस बर्तन में हवा का प्रवेश नहीं होगा, जिससे कि चीनी अच्छी तरीके से घुल जाएगी।
  • इसके बाद उन्हें निकाल कर पॉलिथीन की सीट पर फैला देना चाहिए और 2 दिन तक धूप में रखना होगा।
  • सभी किसान भाई ध्यान रखें, कि यदि आपके यहां बहुत तेज धूप आती है तो आंवले से दूर ही रखें, क्योंकि इससे वह बहुत ही सख्त हो सकते है।
इसके बाद उनकी अच्छे से पैकिंग कर बाजार में बेचने के लिए इस्तेमाल कर सकते है।

आंवला से चटपटी सुपारी बनाने की विधि

इसके अलावा, हाल ही में एग्रीकल्चर वैज्ञानिकों ने आंवला से चटपटी सुपारी बनाने की विधि भी किसान भाइयों के लिए डीडी किसान चैनल के माध्यम पहुंचाई है।
  • इस विधि से चटपटी आंवला सुपारी तैयार करने के लिए पहले पेड़ से मिले आंवलों को अच्छे तरीके से धो लेना होगा।
  • फिर उसकी छोटी-छोटी स्लाइस काट लेनी होगी।
  • बची हुई गुठली को बाहर फेंक देना चाहिए और उसके बाद एक कांच के बर्तन में डाल लेना चाहिए।
  • इसके बाद उसमें काला नमक, सादा नमक और काली मिर्च मसाले को मिलाना होगा।
  • यदि आपके ग्राहकों को अजवाइन और जीरा जैसे मसाले भी पसंद है तो उन्हें भी मिला सकते है।
  • इन आंवलों को 3 से 4 दिन तक उसी बर्तन में रहने दें और समय-समय पर दिन में दो से तीन बार अच्छी तरीके से हिला देना चाहिए।
  • 5 दिन बाद इन छोटी-छोटी स्लाइस को एक बिना हवा प्रवेश करने वाले डिब्बे में भरकर अच्छी तरीके से ढक देना चाहिए।
इस प्रकार यह मार्केट उत्पाद बाजार में बिकने के लिए तैयार है।

ये भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा
 

 यह तो हम सभी जानते हैं कि, आंवले के इस्तेमाल से हड्डियों को ताकत मिलती है और कैल्सियम की अधिकता होने की वजह से कई अन्य प्रकार की बीमारियों से भी बचा जा सकता है। प्राचीन काल से ही अमृत फल के रूप में लोकप्रिय आंवला भारत के कई आयुर्वेदाचार्य के द्वारा उगाया जाता रहा है। सभी किसान भाई ध्यान रखें, कि इस प्रकार तैयार किए गए मार्केट उत्पाद बहुत ही जल्दी संक्रमण से ग्रसित हो सकते है, इनसे बचने के लिए हमें उचित मात्रा में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए। आंवले में फंगल इंफेक्शन से लड़ने की शक्ति तो होती ही है, इसी वजह से यह हमारे शरीर की प्रतिरोध की शक्ति भी बढ़ाता है। यदि आप भी कुछ बीमारियां जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग या फिर अपाचन की समस्या से ग्रसित हैं तो आंवले का सेवन कर इन बीमारियों को दूर कर सकते है।

ये भी पढ़ें: पेपर स्ट्रॉ की बढ़ी मांग, ग्रामीण क्षेत्रों में भी कर सकते हैं ये मुनाफे का व्यवसाय 

आशा करते हैं, कि हमारे सभी किसान भाइयों को आंवले से बनकर बाजार में बिकने वाले उत्पादों को तैयार करने की विधि की पूरी जानकारी मिल गयी होगी और जल्द ही आप भी इन उत्पादों को बनाकर अच्छा खासा मुनाफा कमा पाएंगे।

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला को सामान्यतः भारतीय गूज़बैरी एवं नेल्ली के नाम से जाना जाता है। आंवला को उसके अंदर मौजूद औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल कई सारी दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। आंवला से निर्मित दवाइयों से डायरिया, दांतों में दर्द, अनीमिया, बुखार एवं जख्मों का इलाज किया जाता है। कई प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर एवं मुंह पर लगाने वाली क्रीमें तक आंवला से तैयार की जाती हैं। यह एक मुलायम एवं समान शाखाओं वाला पेड़ है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर तक होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं एवं यह दो प्रजातियों के होते हैं। नर फूल और मादा फूल। इसके फल हल्के पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी तक होता है। भारत में उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य माने जाते हैं।

आंवला की खेती के लिए उपयुक्त मृदा कौन-सी होती है

आंवला सख्त होने के चलते इसको हर प्रकार की मृदा में उत्पादित किया जा सकता है। आंवला को हल्की तेजाबी एवं नमकीन व चूने वाली मृदा में पैदा किया जा सकता है। यदि इसकी खेती समुचित जल निकास वाली एवं उपजाऊ-दोमट मृदा में की जाती है, तो यह बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। यह खारी मृदा को भी सहयोग्य है।
आंवला की खेती के लिए मृदा का pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी भूमि पर इसकी खेती करने से बचें।

आंवला की प्रमुख किस्में

बनारसी - यह शीघ्रता से तैयार होने वाली प्रजाति है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फ्लूनों का आकार बढ़ा, कम से कम भार 48 ग्राम, छिल्का मुलायम होता है एवं फल भंडारण योग्य नहीं होते। इस प्रजाति में 1.4% रेशा उपलब्ध होता है। इसका औसतन उत्पादन 120 किलो प्रति पेड़ होती है। कृष्णा - यह भी जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक पककर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति के फलों का आकार सामान्य से बढ़ा, भार 44.6 ग्राम, छिल्का मुलायम व फल धारियों वाले होते हैं। इस प्रजाति में 1.4% रेशा पाया जाता है। इसका औसतन उत्पादन 123 किलो प्रति पेड़ होता है। एनऐ-9 - यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 50.3 ग्राम, लम्भाकार, छिल्का मुलायम एवं पतला होता है। इस प्रजाति में रेशे की 0.9% मात्रा उपलब्ध होती है। विटामिन सी की मात्रा सर्वाधिक 100 ग्राम होती है। इससे कैंडीज, जैम एवं जैली इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एनऐ-10 - यह भी जल्दी पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में तैयार हो जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार, भार 41.5 ग्राम, छिल्का खुरदरा होता है एवं इसके 6 भिन्न-भिन्न हिस्से होते हैं। इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है व इसमें 1.5 % रेशे की मात्रा उपलब्ध होती है। फ्रांसिस - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 45.8 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा लगभग 1.5% होती है। इस प्रजाति को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं एनऐ-7 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के, भार 44 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5% मौजूद रहती है। कंचन - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल लघु आकार के, भार 30.2 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा 1.5% होती है। साथ ही, इसमें विटामिन सी की सामान्य मात्रा उपलब्ध होती है। इस प्रजाति का औसतन उत्पादन 121 किलो प्रति रुख होती है। एनऐ-6 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 38.8 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा सबसे कम 0.8% होती है। इसमें विटामिन सी की मात्रा 100 ग्राम एवं कम मात्रा में फैनोलिक उपलब्ध होता है। इसे जैम और कैंडीज बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चकिया - यह विलंभ से पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 33.4 ग्राम, इसमें 789 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम विटामिन सी की मात्रा, 3.4% पैक्टिन और 2% रेशा विघमान होता है। इसे आचार और शुष्क टुकड़े निर्मित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की खेती हेतु भूमि की तैयारी

आंवला की खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से जोताई एवं जैविक मृदा की जरूरत होती है। मिट्टी को बेहतर ढ़ंग से भुरभुरा करने के लिए बिजाई से पूर्व जमीन की जोताई करें। जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मृदा में मिलादें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. गहरे नर्सरी बैड तैयार करें।

आंवला की बिजाई की विधि

बिजाई के समय की बात करें तो, आंवला की खेती जुलाई से सितंबर के माह में की जाती है। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी माह में की जाती है। वहीं, मई-जून के महीने में कलियों वाले पौधों को 4.5x4.5 मी की दूरी पर ही लगाएं। साथ ही, बीज की गहराई 1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्डे खोदें एवं सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। बिजाई के ढंग की बात की जाए तो कलियों वाले नए पौधों की पनीरी को मुख्य खेत में लगाया जाता है। साथ ही, बेहतरीन पैदावार के लिए 200 ग्राम बीजों को प्रति एकड़ जमीन में उपयोग करें।

आंवला की फसल हेतु बीज का उपचार

आंवला की फसल को मृदा से उत्पन्न होने वाली बीमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के उपरांत बीजों को हवा में सुखा दें। यह भी पढ़ें: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

आंवला की फसल हेतु खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए समय पर गोड़ाई करें। साथ ही, कटाई एवं छंटाई भी करें। टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं को काट दें एवं केवल 4-5 सीधी टहनियां ही अधिक विकास के लिए रखें। नदीनों का नियंत्रण करने हेतु मलचिंग का तरीका भी काफी प्रभावशाली है। गर्मियों में मलचिंग पौधे के शिखर से 15-10 सैं.मी. के तने तक करें।

आंवला की फसल में सिंचाई किस तरह करें

गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के समयांतराल पर करें एवं सर्दियों में अक्तूबर-दिसंबर के माह में हर दिन चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं होती। फूल निकलने के दौरान सिंचाई ना करें।

आंवला की फसल में हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम

छाल खाने वाली सुंडी:

  • यह तने और छाल को खाकर काफी क्षति पहुंचाती है।
  • इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01% या फैनवलरेट 0.5% घोल को छेदों में भरें।
  • पित्त वाली सुंडी
  • पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
  • इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।

कुंगी:

  • कुंगी पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
  • इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर की शुरूआत में और दूसरी 15 दिनों के उपरांत डालें।

अंदरूनी गलन

  • यह बीमारी प्रमुख रूप से बोरोन की कमी के चलते होती है। इस बीमारी की वजह टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
  • इस बीमारी से संरक्षण के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के माह में डालें।
यह भी पढ़ें: स्ट्रॉबेरी का फल देखने में काफी अच्छा लगता है, इसके लिए एैसा मौसम होना चाहिए

फल का गलना

फल का गलना: इस बीमारी के चलते फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग परिवर्तित हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स और क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें।

आंवला की फसल की कटाई

बिजाई से 7-8 वर्ष के उपरांत पौधे उत्पादन देना शुरू कर देते हैं। जब फूल हरे रंग के हो जाएं एवं इनमें विटामिन सी की ज्यादा मात्रा होने पर तो फरवरी के माह में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को तेज-तेज हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की फसल की कटाई के बाद क्या करें

तुड़ाई के उपरांत छंटाई करनी चाहिए। छंटाई के पश्चात फलों को बांस की टोकरी एवं लकड़ी के बक्सों में पैक कर दें। फलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए बेहतर ढ़ंग से पैकिंग करें एवं जल्दी से जल्दी खरीदने वाली जगहों पर ले जाएं। आंवले के फलों से बहुत सारे उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, एवं मीठे उत्पाद बनाए जाते हैं।